मास्टर फिल्ममेकर संजय लीला भंसाली का नाम भव्यता, ऐश्वर्य और महत्वपूर्ण रूप से संगीत का दूसरा नाम बन चुका है। जी हां, संजय लीला भंसाली एक ऐसे दिग्गज कलाकार के रूप में जाने जाते हैं जिनकी संगीत रचनाएं हमेशा यादगार होती है, और आज और कल की सीमाओं और शैलियों को पार करके बदलते समय के इस दौर में भी जिंदा है। उनके संगीत की श्रेष्ठा का उनका कमिटमेंट न केवल उनके यादगार फिल्म म्यूजिक एल्बमों से साफ होता है, बल्कि उनके इंडिपेंडेंट म्यूजिक एल्बम ‘सुकून’ से भी जाहिर होता है, जो व्यक्तिगत रूप से उनकी क्षमता और हुनर को दिखाता है।
एक संगीतकार के रूप में संजय लीला भंसाली को जो बात अलग बनाती है, वह है हर रचना को एक अलग पहचान देने की उनकी क्षमता। उनका म्यूजिक कहानी का एक अभिन्न अंग बन जाता है, भावनाओं को बढ़ाता है और पूरे सिनेमाई अनुभव को और भी गहरा कर देता है। ऐसे में आज जबकि उनके ‘सुकून’ ने अपनी रिलीज़ के एक साल पूरे कर लिए है, तो यह उस्ताद की संगीत प्रतिभा में गहराई से उतरने का एक परफेक्ट मौका है –
‘सुकून’ –
वह एल्बम है जिसने एक गैप के बाद संगीत रचना में संजय लीला भंसाली की वापसी को चिह्नित किया, जिसमें शांति और दिल को छू लेने वाली धुन है। बेहद खूबसूरत “साहिबा” से लेकर “आसमान” के उत्साहित सुरों तक, हर ट्रैक कहानी के साथ सहजता से जुड़ने वाले संगीत को गढ़ने की भंसाली की क्षमता को दर्शाता है।
‘गंगूबाई काठियावाड़ी’-
संजय लीला भंसाली की आखिरी ब्लॉकबस्टर फिल्म ‘गंगूबाई काठियावाड़ी’ ने एक बार फिर संगीत बनाने की उनकी प्रतिभा का प्रदर्शन किया जो समय और कहानी के अनुरूप होता है। “बाबुल” जैसे दिल छू लेने वाली पेशकश से लेकर “ढोलीडा” तक, साउंडट्रैक संगीत के माध्यम से दर्शकों को एक अलग युग में ले जाने की उनकी क्षमता को रेखांकित करता है।
‘पद्मावत’ –
‘पद्मावत’ अपने आप में एक शानदार सिनेमाई अनुभव है, जिसमें म्यूजिक भी बेहद जबरदस्त है। बेहद मनमोहक “बिंते दिल” और दीवाना कर देने वाला “घूमर” विविध लेकिन एकजुट संगीत अनुभव को बनाने की भंसाली की क्षमता के प्रमाण के रूप में सामने आता हैं।
‘बाजीराव मस्तानी’ –
निर्देशक और संगीतकार दोनों के रूप में ‘बाजीराव मस्तानी’ संजय लीला भंसाली के करियर में एक मील का पत्थर साबित हुई है। इस फिल्म ने “दीवानी मस्तानी” और “आयत” जैसे सदाबहार ट्रैक दिए, जो क्लासिकल एलिमेंट्स को मॉडर्न रचनाओं में मिलाने की उनकी क्षमता को शोकेस करते हैं।
‘राम लीला’ –
रामलीला के जीवंत और इमोशनल साउंडट्रैक्स ने संगीत में एक चमत्कार की मिशाल कायम की। “लाल इश्क” और “नगाड़ा संग ढोल” जैसे गीतों ने पारंपरिक और आधुनिक संगीत संवेदनाओं के बारे में भंसाली की गहरी समझ को दिखाया।
ऐसे में आज जब ‘सुकून’ के एक साथ पूरे होने का जश्न मना रहे हैं, तो यह साफ हो जाता है कि संजय लीला भंसाली की संगीत यात्रा की ये सिर्फ एक शुरूआत है। हर सुर के साथ जादू पैदा करने की उनकी क्षमता दर्शकों को दीवाना करती रहती है, जिससे वह भारतीय फिल्म संगीत की दुनिया में मशहूर हो जाते हैं।