मुझे लगता है कि हर कार्य राजनीतिक है। कुछ बोलना या कुछ ना बोलना भी आपकी राजनीति को दिखाता है- नंदिता दास

Special Conversation: सुभाष के झा कि नंदिता दास से खास बातचीत जानने के लिए पढ़ें।
I think everything is political. Saying something or not saying anything also shows your politics - Nandita Das 3148

Special Conversation: ज़विगेटो… कब और कहां एक डिलीवरी बॉय से जुड़ी हुई कहानी आपके दिमाग में आई?

महामारी के दौरान, हम एक उपभोक्ता के तौर पर इस किस्म के मजदूरों पर ज्यादा से ज्यादा निर्भर होते गए। लेकिन उनसे जुड़ी परेशानियों और संघर्षों पर किसी ने ध्यान नहीं दिया। फिल्म कई छोटी-छोटी कई बातों पर ध्यान देती है जिसे हम आमतौर पर नजरअंदाज कर देते हैं। शहरी मजदूरों पर आजकल बहुत कम ही फिल्में बनती हैं। एक शहरी मजदूर होने के अलावा ज़विगेटो खास किस्म के वर्ग जाति और लिंग के हमारे पूर्वाग्रहों के बारे में बताता है। यह मेरे प्रकाशक मित्र समीर पाटिल के साथ बढ़ती बेरोजगारी और शहरी मजदूरों के जीवन में आने वाले समस्याओं पर हुई हमारी बातचीत से शुरू हुई। इसे बाद में हमने एक डिलीवरी बॉय के जीवन पर आधारित एक शॉर्ट फिल्म लिखना शुरू किया।

टोरंटो फिल्म फेस्टिवल में ज़विगेटो को कैसे देखा गया?

हालांकि यह फिल्म भारत में आधारित है। लेकिन मुझे यह देख कर बहुत खुशी हुई कि टोरंटो फिल्म फेस्टिवल के दर्शकों ने भी इसे एक वैश्विक और मानवीय समस्या के रूप में देखा और अपनी सहानुभूति जताई। मैं फिल्में बनाती हूं क्योंकि यह कहना मुश्किल होता है। इसीलिए मैं जितने ज्यादा लोगों तक पहुंचती हैं मुझे उतनी ही खुशी होती हैं। अब हम जल्द ही बुसान जाने वाले हैं। लेकिन जिस बात से मुझे सबसे ज्यादा खुशी होगी कि मैं इसे दर्शकों को दिखा सकूं। खासकर उन मजदूरों को जिन पर यह फिल्म बनी है।

26 सालों तक अलग अलग फिल्म फेस्टिवल में एक अभिनेता और एक डायरेक्टर की तरह घूमने के बाद, मैं यह कह सकती हूं कि किसी फिल्म के लिए दर्शकों की प्रतिक्रिया उस फिल्म से ज्यादा बात करती है। फिल्म कैसी भी हो अच्छी, बुरी या गंदी। मैं खुद की सबसे बड़ी आलोचक हूं। लेकिन जब हम फिल्म देखते हैं, तो अपने जीवन के मुताबिक हम उसके अलग-अलग हिस्सों से अपना जुड़ाव महसूस करते हैं। इसीलिए मैं रिव्यु और कॉमेंट बहुत कम पढ़ती हूं, मैं तारीफ और आलोचना के बंधन में बंदना नहीं चाहती हूं। मुझे जो कुछ भी करना होगा मैं फिल्म के माध्यम से ही करूंगी। तो एक बार जब फिल्म बनकर तैयार हो जाती है, इसे दर्शकों के हवाले कर देती हूं। जो मेरा काम नहीं है कि मैं उनके प्रतिक्रियाओं पर कोई टिप्पणी करू।

आपने इस अलग किस्मत के परियोजना के लिए निर्माताओं को कैसे राजी किया?

अप्लॉज़ एंटरटेनमेंट के उद्यमी समीर नायर, जो की इसके निर्माता है उन्होंने मुझे इसे एक फीचर फिल्म के रूप में बनाने के लिए प्रेरित किया। पहले मुझे लगा कि यह इस विषय पर कुछ खास नहीं किया जा सकता, लेकिन जब से मैंने इस मुझसे से जुड़े श्रमिकों और नई तकनीक के बीच टकराव को समझना शुरू किया। मेरी इस विषय में रुचि बढ़ती गई जो एक दलदल की तरह मुझे अपनी तरफ खींचता रहा। मैंने अभी देखा शुरू किया कि इसका असर परिवार पर कैसे होता है, खासकर महिलाओं पर। श्रमिक अर्थव्यवस्था के बढ़ने के साथ, मनुष्य और मशीन के बीच का संघर्ष जितेश जैकलिन ने मॉडर्न टाइम्स में दिखाया था, अब एक मनुष्य और एल्गोरिथ्म के बीच बदल गया है। इसीलिए ज़विगेटो एक कभी ना रुकने वाली जिंदगी की कहानी है। बिना किसी संकोच के, यह उस फिल्म एक पूर्व फैक्टरी फ्लोर मैनेजर की जिंदगी को भी दिखाता है जिसने वहां बाहरी के वजह से अपनी नौकरी गवां दी है। वह डिलीवरी ब्वॉय के रूप में काम करता है जहां उसकी जिंदगी मोबाइल के डिलीवरी एप में मिल रहे रिव्यू और रेटिंग पर टिकी हुई है। वहीं दूसरी तरफ, उसकी बीवी जो कि एक गृहिणी है वह दुनिया को एक अलग नजर से देखती है जहां उससे काम करने का मौका मिलता है। इसके लिए यह मौका संघर्षों के साथ-साथ नई किस्म की आजादी हिलाता है।

14 साल में यह आपका तीसरा निर्देशन है। आप निर्देशन के बीच इतने लंबे समय का फासला क्यों है?

अभिनय, लिखना, निर्देशन और निर्माता… यह सब स्वाभाविक रूप से हुआ है। इसलिए कई सालों में मैंने अपने फैसले पर भरोसा करके इन सब कामों को किया है। मेरी चाह और कलात्मक तरीके से खुद को व्यक्त करना मुझे बहुत पसंद है। लेकिन मैंने इनमे से किसी भी कलाओं को कहीं से सिखा नहीं है, इसीलिए मैं लिखना दुबारा लिखना पसंद करती हूँ इसीलिए मुझे इन परियोजनाओ पर काम करने में बहुत समय लगा है और मैंने इन 14 साल में दूसरे काम भी किए हैं। जिसमें माँ बनना भी शामिल है। हाँ लेकिन अब मैं कम संकोची निर्देशक हूँ। और अब काम में अंतराल भी कम होगा। मैं दूसरे चझे भी करूँगी, जिसमें अभिनय और निर्देशन, समाजसेवा भी शामिल है। मुझे बहुत सी सामाजिक और राजनैतिक मुद्दों में रुचि है। और मैं खुद को साबित करने में कोई दबाओ नहीं लेती।

अपने कपिल शर्मा को ज़विगेटो के मुख्य के रूप में क्यों चुना? यह एक सामान्‍य चयन नहीं है। क्या कपिल आपके उम्मीदों पर खड़े उतरे?

माहामारी के वजह से अभिनेता के डेट और शूटिंग का समय तय करना बहुत मुश्किल रहा। तभी एक दिन जब मैं इंटरनेट पर कुछ देख रही थी, मेरी नज़र कपिल शर्मा पर गई। मैंने कपिल शर्मा के काम को नही देखा था क्योंकि मेरे घर पिछले 6 साल से टीवी नहीं है। लेकिन स्क्रीन पर उनकी सादगी, करिश्मा और ईमानदरी मुझे सबसे ज्यादा पसंद आई। फिर मैंने उनसे संपर्क करने को कोशिश की बिना यह सोचे की यह कमडी फिल्म नही है क्या वह इसमे रिची दिखाऐंगे। मुझे उम्मीद थी की कपिल एक आम आदमी के किरदार को अच्छे से निभाऐंगे। जो की वह अभी नहीं हैं।

क्या कपिल सही चयन साबित हुए?

उसके पास एक स्वभावीक चार्म है और वह आसानी से किरदार के साथ जुड़ गएं। वह अपने दूसरे अभिनताओ के साथ भी बहुत अच्छा व्यवहार करते हैं। उन्होंने मुझे हमेशा कहा है वह खुद को एक अभिनेता के रूप मे मुझे समर्पित कर देंगे और उन्होंने ऐसा किया भी है। वह बहुत तेज दिमाग होने के कारण अक्सर बहुत सवाल पूछते थे और अपना सुझाओ भी देते थे। वह फिल्म में काफी बेहतरीन और असली दिखे हैं और मुझे अपने फ़ैशले पर गर्व है की मैं उनके पास गई।

आप अपने फिल्म के व्यापार को कैसे देखातीं हैं जब ओटीटी ने सिनेमा के सारे मिथक तोड़ दिए है।

हाँ, यह सच है की ओटीटी ने फिल्मों के प्रति दर्शकों का नजरिया बदल दिया है। जैसा की सारे नए तकनीक के साथ है, जिसके कुछ फायदे भी हैं तो बहुत नुकसान भी है। यह बहुत सारे फ़िल्म निर्माता, अभनिता और तकनीक से जुड़े लोगो के लिए एक अवसर बनकर आया है और इसने फिल्म की पहुँच भी बढ़ा दी है। एक फिल्म निर्माता के रूप में मैं मानती हूँ की लोगो को यह फिल्म सबके साथ बैठकर सिनेमा घरों में देखना चाहिए। इसके अलावा तेजी से सिनेमा घरों में फिल्मों के रिलीज होना पर होने वास व्यापार का प्रभाव कम होता जा रहा है। मेरे लिए फिल्म को सिनेमा घरों मे रिलीज करना और ओटीटी पर रिलीज करना दोनों जरूरी है। मेरे हिसाब से आज का दर्शक बाकी सब छोड़ कहानी पर ज्यादा ध्यान देते है। मुझे लगता है की ज़विगेटो की कहानी भारत में आधारित है लेकिन इसका प्रभाव दुनिया के दर्शकों पर होगा और ओटीटी इस बात को सुनिश्चि करने में काफी कारगर रहेगा।

आप 26 साल से एक अभिनेत्री के रूप में इस इंडस्ट्री में रहीं हैं। आप अपने करियर को कैसे देखती हैं और इसमें से आपका पसंदीदा किरदार कौन सा रहा है?

मैं एक अभिनेत्री के रूप में फायर को अपनी पहली फिल्म मानती हूँ। इससे पहले मैंने फिल्म में बहुत छोटा किरदार किया था जो की कभी रिलीज नही हुआ। पिछले 16 साल में मैंने, दस ज्यादा भाषाओं में 40 से ज्यादा फीचर फिल्में की हैं। एक अभिनेत्री के रूप में मैं बहुत सारी कहानियां का हिस्सा रहीं हूँ, इस दौरान देश के अलग अलग जगहों पर गई, अलग अलग लोगों से मिली जिसने मुझे एक बेहतर इंसान बनने में मदद की। मैंने धीरे धीरे सिनेमा के ताकत को समझा कहानी के ताकत को समझा। मैं खुशकिस्मत रही थी मैंने मृणाल सेन, श्याम बेनेगल, अदूर गोपालकृष्णन, रितुपर्णो घोष, मणिरत्नम जैसे निर्देशकों के साथ काम किया है। इनके साथ काम करके मैंने बहुत कुछ सीखा और मुझे यह समझ आया कि एक निर्देशक एक फिल्म को कैसे आकार देता है। इनका नाम लेने के पीछे यह भी एक कारण है कि मैंने इनसे कुछ बहुत जरूरी काम सिखा है। जो मैं हमेशा अपने साथ रखना चाहती हूँ। मैंने ज्यादातर अच्छा काम क्षेत्रीय सिनेमा ने किया है, जो की उतने ही भारतीय हैं जितना हिंदी सिनेमा। आजकल और चींटी के वजह से हमें वह ज्यादा देखने मिलते हैं, लेकिन मैंने अपना ज्यादातर काम सोशल मीडिया और डिजिटल मीडिया से पहले ही किया है। नाम के अलावा जो आप पसंद करेंगे मेरे करियर के कुछ बेहतरीन फिल्मों में फायर, अर्थ, बिफोर द रेन, नालू पेन्नुंगल, देवेरी, कन्नथिल मुथमित्तल, पोदोखेप और अमर भुवन जैसे जैसे फिल्मों का एक अभिनेत्री के रूप में मैं हिस्सा रही हूं। लेकिन इन 16 सालों में मैंने तीन फीचर फिल्म फीचर फिल्म का निर्देशन, तीन शॉर्ट फिल्म, और चिल्ड्रन फिल्म सोसायटी के अध्यक्ष के रूप में भी मैंने काम किया है। 8 सालों तक मैंने एक मासिक कॉलम भी लिखा है,येल से फेलोशिप भी किया है, 12 साल तक बच्चे भी पाले हैं. .. और जो कोई भी किरदार मुझे निभाना पड़े मैं निभाऊंगी।

1947 अर्थ, फायर और बवंडर में अपने बेहतरीन प्रदर्शन के बारे में आपका क्या ख्याल है?

मैं यह कैसे कह सकती हूं कि मैंने फिल्म में बेहतरीन प्रदर्शन किया! यह दर्शकों के ऊपर है मुझे पसंद आया कि नहीं। हर एक प्रदर्शन को आप बेहतरीन नहीं कह सकते और विशेषण उस किरदार के लिए होता है जो कोई भी कलाकार निभाता है। मेरी माने तू फायर एक स्वभाविक किरदार है जबकि बवंडर एक शक्तिशाली किरदार है। अगर मुझे एक बेहतरीन किरदार सुनना हो तो मैं 1947 अर्थ से सांता का किरदार चुनूंगी। क्योंकि वह भोलि होने के साथ-साथ बहुत विषयासक्त भी है। और वह मिश्रण कहानी में एक अलग प्रभाव जोड़ता है।

आपके लिए राजनीति को फिल्म से अलग करके नहीं देखा जा सकता? आप इस मुश्किल समय में फिल्म और राजनीति के संबंधों को कैसे देखती हैं?

मुझे लगता है कि हर कार्य राजनीतिक है। कुछ बोलना या कुछ ना बोलना भी आप की राजनीति को दिखाता है। भारत में हमें लगता है कि राजनीतिक होने का मतलब किसी राजनैतिक दल का समर्थन या विरोध करना है। राजनैतिक होने का साधारण सा मतलब होता है अपने आसपास के मुद्दों से संवाद करना, उस पर अपना दृष्टिकोण होना। मुझे लगता है कि एक कहानी में यह ताकत होती है कि वह किसी भी जटिल मुद्दे को उसकी विषमताओं के साथ और उसके जुड़े सारे तकनीकी परतो के साथ, उसे समझने में मददगार साबित हो सकता है। यह सवाल उठाने में मददगार साबित होता है और हमें हमारे पूर्वाग्रहों और पक्षपातो वह भी दिखाता है। आप चाहे तो बिना किसी पर उंगली उठाए सच को जैसे का तैसा दिखाते हुए दर्शकों के लिए एक आईना तैयार कर सकते हैं। जिसमें तू अपनी खामियां देखते हुए खुद में सुधार ला सकते हैं। इसमें मेरी पृष्ठभूमि काफी बहुत दखल है क्योंकि मेरे परिवार से लोग समाज सुधार से जुड़े हुए हैं। इसीलिए शायद मेरी तीनों निर्देशन भी इन्हीं मुद्दों से जुड़ी रही है।

अपने भविष्य में आने वाले योजनाओं के बारे में बताएं?

मैंने बेझिझक निर्देशन को गले लगा लिया है। और इसके बाद मैं कुछ दूसरे फिल्मों का हिस्सा भी देखूंगी, ज़विगेटो के बाद के लिया मैंने कुछ अभिनय और निर्देशन से जुड़े कामों के लिए बातचीत में हूं, हालांकि जिनमें से सारे काम अच्छे नहीं है। इन सबके बाद, मैं अपने पौधों को भी उनका उचित समय देना चाहती हूं। पिछले कुछ सालों में और खासकर महामारी के बाद मैंने बहुत सारी योजनाएं बनाने में यकीन खो दी है और समय के साथ नए नए आश्चर्य और बदलावों के लिए तैयार हूं। हम बहुत ज्यादा योजनाएं बनाने में उलझ जाते हैं जबकि हमें आज पर ध्यान देना चाहिए और इस धरती को हरा, बेहतर और खुशहाल बनाने में मदद करनी चाहिए।

सुभाष के झा: सुभाष के. झा पटना, बिहार से रिश्ता रखने वाले एक अनुभवी भारतीय फिल्म समीक्षक और पत्रकार हैं। वह वर्तमान में टीवी चैनलों जी न्यूज और न्यूज 18 इंडिया के अलावा प्रमुख दैनिक द टाइम्स ऑफ इंडिया, फ़र्स्टपोस्ट, डेक्कन क्रॉनिकल और डीएनए न्यूज़ के साथ फिल्म समीक्षक हैं।