Main Atal Hoon Review: पंकज त्रिपाठी के कंधो पर टिकी पूरी फिल्म

Main Atal Hoon Review: पढ़िए पंकज त्रिपाठी अभिनीत मै अटल हूं का रिव्यू।
Main Atal Hoon Review: पंकज त्रिपाठी के कंधो पर टिकी पूरी फिल्म 40319

Main Atal Hoon Review: देश के सबसे लोकप्रिय प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेई जी का किरदार निभाने के लिए पंकज त्रिपाठी (Pankaj Tripathi) को चुना गया, जो सबसे बेहतरीन फैसला है। फिल्म पूरी तरह से पकंज त्रिपाठी के कंधो पर टिकी हुई हैं। जैसा कि आप सभी को पता है, अटल जी की जिंदगी पर बनी फिल्म को रवि जाधव (Ravi Jadhav) द्वारा निर्देशित किया है। कई मराठी हिट फिल्मों का निर्देशन करने वाले रवि जाधव ने बेहद शानदार काम किया है, जिसका सबूत यह फिल्म है। फिल्म पूर्व प्रधानमंत्री जी की जिंदगी के अलग-अलग और अहम पहलुओं के साथ दर्शको के सामने आती है। फिल्म की शुरआत में हमें प्रधानमंत्री के दमदार व्यक्तित्व की झलक देखने को मिलती हैं, जिसके बाद सीधे कहानी साल 1938 की ओर मुड़ती है। प्रतिभाशाली अभिनेता ने बेहद सरलता के साथ अपने किरदार में जान फूंकी है और सभी को पर्दे से जोड़े रखने कि कोशिश कि है।

कवि का किरदार निभाने में आईं होगी दिक्कत

मुझे लगता है कि मीठी हिंदी भाषा में कविताओं के जरिए दहाड़ने वाले प्रधानमंत्री का किरदार निभाना पंकज त्रिपाठी के लिए काफी चुनौतीपूर्ण रहा होगा। फिल्म में कुछ गलतियां भी नजर आईं, जिसे अनदेखा कर दिया गया। किरदारों के रूप में सिर्फ अटल बिहारी बाजपेई और पण्डित दिन दयाल का फैसला सही था। आपको बता दें, पण्डित दिन दयाल के किरदार में दया शंकर पाण्डेय नजर आते हैं, जिन्होंने अपने किरदार को पूरी इमानदारी के साथ निभाया है। इसके अलावा फिल्म के अन्य किरदार को पहचानने के लिए मुझे उनके नाम की जरूरत पड़ती है। फिल्म की कहानी जब बचपन से शुरू होती हैं, तो दर्शक देखते है, कि अटल जी को अटला बुलाया जाता है, जो उनके परिवार वाले उन्हें प्यार से बुलाते है।

बापू जी की सीख से अटला के अटल हुए इरादे

बापू जी की सीख से अटला के अटल मजबूत होते हैं और वह अपने कविताओं के माध्यम से सभी के दिलो में जगह बनाने में कामयाब होते हैं। कहानी धीरे- धीरे आगे बढ़ती है, जहा ग्वालियर का विक्टोरिया कॉलेज का दृश्य सभी के सामने आता है। अपनी वकालत की पढ़ाई के लिए गए अटला को उनकी हसीन जोड़ी मिलती हैं, जो बेहद कम समय के लिए उनकी दिल्लगी रहती है। राजकुमारी का दिल अटल अपने भाषण से चुराते है, जिससे उनकी कहानी आगे बढ़ती है। हालांकि, राजकुमारी दिल्ली चली जाती है और उनकी दिल्लगी अधुरी रह जाति है।

अब फिल्म कि कुछ कमियों पर ध्यान दे तो हमे नजर आता है, कि फिल्म में नजर आ रहे डमरू आज के जमाने के नजर आते हैं, जिन्हे दर्शक अनदेखा करने की कोशिश करते हैं। इसके अलावा किरदार पर थोड़ी और मेहनत करने की जरुरत थी। हिंदी भाषा के चलते कई सितारों का मेल टूटता हुआ नजर आया। फिल्म सिर्फ किसी किरदार के कारण पूरी तरह से तैयार नहीं हो सकती है, इसमें निर्देशक का ध्यान और कुछ मजबूत डायलॉग भी जरुरी है। अब अगर इसके रेटिंग कि बात करे तो मेरी ओर से इस फिल्म को 2 स्टार मिलते हैं।

विशाल दुबे: पत्रकारिता की पढ़ाई में 3 साल यु गंवाया है, शब्दों से खेलने का हुनर हमने पाया है, जब- जब छिड़ी है जंग तब कलम ने बाजी मारी हैं, सालों के तर्जुबे के संग अब हमारी बारी है।