Madgaon Express movie Review: कॉमेडी से कोकीन तक की लोटपोट सवारी

Madgaon Express movie Review: मडगांव एक्सप्रेस की समीक्षा पढ़िए।
Madgaon Express movie Review: कॉमेडी से कोकीन तक की लोटपोट सवारी 43667

Madgaon Express movie Review: गोवा जाना हर युवा का सपना होता है और कुणाल खेमू की मडगांव एक्सप्रेस इसी सपने पर आधारित है। हालाँकि, फिल्म सभी दर्शकों को आकर्षित करने में ज्यादा सफलता हासिल नहीं कर पाई। फिल्म कॉमेडी से लेकर कोकीन तक का सफर तय करती है, इस दौरान कई पंच लाइनें दर्शकों के सामने आती हैं, जिनके साथ लेखक खेमू ने पूरी ईमानदारी की है। मुझे लगता है कि किरदारों के चयन में कुछ गलतियां हुई हैं, क्योंकि डोडो (दिव्येंदु) एक मराठी परिवार में फिट नहीं बैठ पा रहा हैं। लेकिन, दिव्येंदु शर्मा की काबिलियत पर कोई सवाल नही उठाया जा सकता है, क्योंकि अभिनेता ने अतीत में मिर्ज़ापुर जैसे सीरीज से खूब नाम कमाया है, मगर इस बार उनका जादू कुछ हद तक फिका नजर आया। फिल्म कहीं-कहीं दर्शको को लोट-पोट करने की कोशिश करती हैं, जिसे भुलाया नहीं जा सकता। वहीं स्कैम 1992 में हर्षद मेहता के किरदार से जनता का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करने वाले प्रतीक गांधी ने भी बेहद कमाल का प्रदर्शन किया है।

फिल्म की कहानी

फिल्म मडगांव एक्सप्रेस की कहानी तीन ऐसे दोस्तो के इर्द-गिर्द घूमती है, जिनका बचपन से गोवा जाने का सपना है। हा मगर! डोडो (दिव्येंदु शर्मा) पिंकू (प्रतीक गांधी) और आयुष (अविनाश तिवारी के परिवार वालों ने उन्हें बचपन में ऐसा करने से रोक दिया। बाद में, पिंकू और आयुष विदेश चले जाते हैं, जबकि डोडो मुंबई की चाल में मटरगस्ती करता रहता है। वह सोशल मीडिया पर भौखाल बनाने की कोशिश करता है और कुछ दिनों बाद उसके दोस्त मुंबई आते हैं। डोडो के फर्जी पोस्ट दोस्तों को यह सोचने पर मजबूर कर देते हैं कि वह भी उन्हीं की तरह अमीर है। अब तीनों दोस्त मिलकर अपने बचपन के अधूरे सपने को पूरा करने के फिराक में है। लेकिन, गोवा जाते ही उनके हाथ ढेर सारा कोकीन लगता है, जहां से कहानी एक लम्बी यूटर्न लेती है। कॉमेडी से कोकीन तक के सफर को दर्शक हंसी के साथ तय करते हैं, जिसे देखने में आपको मजा आएगा। अगर आप! कॉमेडी फिल्म के दीवाने है, तो आप इस फिल्म का पूरा लुफ्त उठा सकते हैं।

फिल्म में मौजूद कलाकारों की टोली

फिल्म में सभी कलाकारों ने खूब मेहनत की है और उनकी मेहनत स्क्रीन पर साफ नजर आ रही है। दिव्येंदु शर्मा का मजाकिया अंदाज दर्शकों को लुभाने में सक्षम लग रहा है, जबकि प्रतीक गांधी ने शानदार परफॉर्मेंस दी है। कोकीन के प्रभाव में, गांधी शानदार ढंग से एक साधारण व्यक्ति से राउडी में बदलते है। वहीं अविनाश का किरदार इन स्टार्स से थोड़ा अलग है, क्योंकि उनका किरदार थोड़ा गंभीर है. अविनाश अपने किरदार के प्रति पूरी तरह ईमानदार रहे हैं और जनता को लुभाने में सफल रहे हैं। इसके अलावा रेमो डिसूजा का कैमियो भी बेहतरीन रहा, जिसमें वह डॉक्टर के रूप में नजर आते हैं। किन्तु, निर्देशक ने नोरा फतेही के साथ नाइंसाफी की है, क्योंकि उनके किरदार को बेहद कम दिखाया गया है।

डायरेक्शन और लेखन

कुणाल खेमू ने इस फिल्म को अपने कलम से तराशा है, जिसे पर्दे पर देखा जा सकता है। फिल्म बेहतरीन ढंग से एक लम्बी यात्रा तय करती हैं, जिसका मजा दर्शको द्वारा खूब लिया जाता है। वहीं निर्देशन की दुनिया में नए खेमू ने फिल्म के लिए अच्छा काम किया है, मगर उन्हें कहीं-कहीं थोड़ी मेहनत की और जरूरत थी।

रेटिंग

फिल्म दर्शकों को खूब प्रभावित करती है और अंत तक पर्दे से बंधे रखती है। अगर आप कॉमेडी फिल्म के दीवाने है, तो इसे आप जरूर देखे। मनोरंजन न्यूज ने इस फिल्म को 3.5 स्टार दिए है।

विशाल दुबे: पत्रकारिता की पढ़ाई में 3 साल यु गंवाया है, शब्दों से खेलने का हुनर हमने पाया है, जब- जब छिड़ी है जंग तब कलम ने बाजी मारी हैं, सालों के तर्जुबे के संग अब हमारी बारी है।